tag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post5117308825718799654..comments2024-03-14T00:05:43.330-05:00Comments on bajaar: कटरा बी आर्ज़ू और आज का लोकतंत्रUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post-11728286637495611552007-09-29T13:42:00.000-05:002007-09-29T13:42:00.000-05:00आप सबकी प्रतिक्रियाएं जान कर अच्छा लगा. हां, मैं प...आप सबकी प्रतिक्रियाएं जान कर अच्छा लगा. हां, मैं प्रतिक्रिया बहुत देर से दे रहा हूं.<BR/>घुघूती जी<BR/>लेखक-पत्रकार तभी घटनाओं के बारे में पहले से बता सकते हैं जबकि वे समाज के तमाम अंतर्द्वंद्वों को साफ़-साफ़ समझ सकते हों, चीज़ों को आपस में जोड़ कर देखने की उनके पास नज़र हो और घटनाओं का द्वंद्ववादी विश्लेषण करने की समझ हो. कई लेखक ऐसे रहे हैं कि उन्होंने कमाल की भविष्यवाणियां की हैं. नहीं मैं ज्योतिषवाली भविष्यवाणी की बात नहीं कर रहा, बल्कि भविष्य की दिशा के बारे में कह रहा हूं. इसमें जैक लंडन का नाम शायद सबसे पहले लिया जायेगा. उन्होंने 1908 के अपने उपन्यास आयरन हील में जिस तरह की घटनाओं का ज़िक्र किया है वे बाद में, 1936 तक और उसके बाद तक घटीं. अगर आप देखें तो सोवियत क्रांति, लेनिन जैसे नेता, हिटलर जैसे फ़ासिस्ट और अमेरिकी खुफ़िया पुलिस के गठन जैसी अनेक परिघटनाएं बाद में जो घटीं, उनके बारे में साफ़ साफ़ ज़िक्र आयरन हील में किया गया है. यह किसी चमत्कार के ज़रिये नहीं हुआ और न ही आयरन हील एक फैंटेसी है. यह बेहद यथार्थवादी उपन्यास है. एक कम्युनिस्ट क्रांति इसका विषय है. इसी तरह शोलोखोव के उपन्यास एंड क्वायट फ़्लोज़ द डोन के बारे में भी कहा जा सकता है जिसमें सोवियत संघ के विघटन के सूत्र आसानी से तलाशे जा सकते हैं.<BR/>अजित भाई, आपके सवाल का जवाब भी शायद इसी में है. मुझे लगता है कि हमारे देश के अधिकतर समकालीन फ़िक्शन लेखकों के पास वह नज़र या समझ ही नहीं है, भले ही उनके साथ वामपंथी या प्रगतिशील या कम्युनिस्ट होने का टैग लगा हुआ हो. टैग लगा लेने से कोई वही नहीं हो जाता.एक और बात है कि हमारे यहां केवल सांप्रदायिक नहीं होने या इसका विरोधी होने भर से लेखक को वाम या प्रगतिशील लेखक मान लिया जाता, भले की उसके सोच में सामंती तत्व बने हुए हों और वह उतनी सूक्ष्मता से न सोच-देख पाता हो. भ्रम इसलिए भी बनता है. इसके अलावा हिंदी लेखक जगत में एक बडी़ कमी यह है कि लेखक किसी आंदोलन से जुडे़ हुए नहीं हैं. वे पूरी तरह जनता के संघर्षों से कटे हुई हैं. उन्हें कई बार ज़मीनी हालात का पता भी नहीं होता और वे सिर्फ़ दिल्ली और दूसरे शहरों में बैठ कर बस लिखते रहने को अपने आप में एक महान कार्य समझते हैं. ऐसे में जो हो सकता है वही उनके साथ हो रहा है. न उनके पास वैसी रचनाएं हैं और पाठक.Reyaz-ul-haquehttps://www.blogger.com/profile/07203707222754599209noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post-78416927906643517742007-09-06T10:09:00.000-05:002007-09-06T10:09:00.000-05:00राहुल ने ज़िक्र किया, इसी बहाने राही की किताब की या...राहुल ने ज़िक्र किया, इसी बहाने राही की किताब की याद ताज़ा हुई और रियाज़ की प्रतिक्रिया भी जान पाया. केवल यही एक किताब नही दोस्तो, उनकी तमाम किताबे इसी तरह के जज़्बे जगाती है. दिल एक सादा कागज़, सीन पिचह्त्तर और हिम्मत जौनपुरी भी देखे, राय और पुख्ता होगी.prabhathttps://www.blogger.com/profile/15628632915511518626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post-47126505835840301992007-09-04T11:26:00.000-05:002007-09-04T11:26:00.000-05:00राही मासूम रजा गजब के लेखक थे। संवाद जबरदस्त। अच्छ...राही मासूम रजा गजब के लेखक थे। संवाद जबरदस्त। अच्छा लिखा है आपने कटरा बी आर्जू के बारे में।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post-74419722149435999332007-09-01T17:11:00.001-05:002007-09-01T17:11:00.001-05:00ठीक कहते हैं। मैं राही साहब के समूंचे गद्य साहित्य...ठीक कहते हैं। मैं राही साहब के समूंचे गद्य साहित्य का भी प्रशंसक हूं। कटरा बी आर्ज़ू का जवाब नहीं। आपने जो जो बातें रेखांकित की हैं सब से सहमत हूं। कहां गए ऐसे लोग ? अब क्यों नहीं ऐसा लिखा जाता ?अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post-18621234501654344402007-09-01T17:11:00.000-05:002007-09-01T17:11:00.000-05:00ठीक कहते हैं। मैं राही साहब के समूंचे गद्य साहित्य...ठीक कहते हैं। मैं राही साहब के समूंचे गद्य साहित्य का भी प्रशंसक हूं। कटरा बी आर्ज़ू का जवाब नहीं। आपने जो जो बातें रेखांकित की हैं सब से सहमत हूं। कहां गए ऐसे लोग ? अब क्यों नहीं ऐसा लिखा जाता ?अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post-64198395435033334082007-09-01T17:09:00.000-05:002007-09-01T17:09:00.000-05:00ठीक कहते हैं। मैं राही साहब के समूंचे गद्य साहित्य...ठीक कहते हैं। मैं राही साहब के समूंचे गद्य साहित्य का भी प्रशंसक हूं। कटरा बी आर्ज़ू का जवाब नहीं। आपने जो जो बातें रेखांकित की हैं सब से सहमत हूं। कहां गए ऐसे लोग ? अब क्यों नहीं ऐसा लिखा जाता ?अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7278137563363677271.post-80888436224706201962007-09-01T13:14:00.000-05:002007-09-01T13:14:00.000-05:00कोई भी तंत्र हो यदि जनता, विशेषकर पत्रकार सजग न रह...कोई भी तंत्र हो यदि जनता, विशेषकर पत्रकार सजग न रहें तो इससे पहले कि हम समझें और संभले हमारे अधिकार छीन लिए जाएँगे । ऐसे में लेखक हमें पहले से ही आगाह कर सकते हैं ।<BR/>यह पुस्तक पढ़ी नहीं है, अवसर मिलते ही पढ़ूँगी ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.com